अब्दुल क़ादिर जीलानी
अब्दुल-कादिर जीलानी

अब्दुल-कादिर जीलानी,अब्दुल कादिर जिलानी की कहानियाँ बहुत मशहूर है अब्दुल कादर जीलानी के चमत्कार इंसान को चौंका दें जब अब्दुल कादिर जिलानी बयान फरमाते तो कितने ही लोग वहीं दम तोड़ देते और कुछ जंगल को भाग जाते और कुछ पागल हो जाते.
19 December को ग्यारहवीं शरीफ का त्योहार है. यह त्योहार पीरों के पीर शेख सैय्यद अबू मोहम्मद अब्दुल कादिर जीलनी रहमतुल्लाह अलैह से निस्बत रखता है. जिन्हें गौस ए आजम के नाम से जाना जाता है.
गौस ए आजम के करामात बचपन से ही दुनिया वालों ने देखा है. जब आप छोटे ही थे तो इल्म हासिल करने के लिए मां ने 40 दीनार (रुपये) देकर काफिला के साथ बगदाद रवाना किया. रास्ते में 60 डाकुओं ने काफिला को रोक कर लूटपाट मचाया. डाकुओं ने किसी को भी नहीं छोड़ा और सबों का माल व पैसे लूट लिये. गौस ए आजम को नन्हा जान कर किसी ने नहीं छेड़ा. चलते-चलते जब एक डाकू ने यूं ही पूछ लिया कि तुम्हारे पास क्या है.
गौस ए आजम ने पूरी इमानदारी से कहा मेरे पास 40 दीनार है. वह मजाक समझा और आगे निकल गया. एक दूसरे डाकू के साथ भी यही सब हुआ. जब लूट का माल लेकर डाकू अपने सरदार के पास पहुंचे और नन्हें बच्चे का जिक्र किया तो सरदार ने बच्चे को बुलाकर कर मिलना चाहा. सरदार ने भी जब वही बातें पूछा तो गौस ए आजम ने जवाब में वही दोहराये कि मेरे पास चालीस दीनार हैं.
तलाशी ली गई तो 40 दीनार निकले. डाकुओं ने जानना चाहा कि आप ने ऐसा क्यों किया. गौस ए आजम ने फरमाया सफर में निकलते वक्त मेरी मां ने कहा था हमेशा हर हाल में सच ही बोलना. इसलिए मैं दीनार गंवाना मंजूर करता हूं लेकिन मां की बातों के विरुद्ध जाना पसंद नहीं किया. गौस ए आजम की बातों का इतना असर हुआ कि सरदार समेत सभी डाकूओं गुनाहों से तौबा कर नेक इंसान बन गये. गौस पाक अपनी जिंदगी में मुसीबतें झेल कर वलायत के मुकाम तक पहुंचे. उन्हें वलायत में वह मुकाम हासिल हुआ जो किसी अन्य वली को नहीं मिला.
इसलिए गौस ए आजम ने फरमाया मेरा यह कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है. यह सुन कर संसार के सभी वलियों ने अपनी गर्दन झुका ली. मुल्क शाम में पीरों के पीर कहे जाने वाले हजरत मोहम्मद बिन उमर अबू बकर बिन कवाम ने भी गौस ए आजम के एलान पर अपनी गर्दन झुका ली. ख्वाजा गरीब नवाज सय्यदना मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुललाह अलैह मुल्क खरामां के एक पहाड़ में उन दिनों इबादत किया करते थे.
जब आप गौस ए आजम का एलान सुने तो अपना सिर पुरी तरह जमीन तक झुका लिया और अर्ज किये गौस ए आजम आप का एक नहीं, बल्कि दोनों पैर मेरे सिर और आंखों पर है. गौस ए आजम परहेजगार, इबादत गुजार, पाकीजा, पाक व अल्लाह वालों के इमाम हैं. आप के हुक्म पर आम इंसान ही नहीं बल्कि सभी वली भी अमल करते हैं.
अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी
अल्लाह ने गौस ए आजम को वह बलुंद मुकाम अता फरमाया कि वह अपनी नजर ए वलायत से वह सब कुछ देख लेते, जहां तक किसी आम इंसान की नजर, अक्ल व सोच भी नहीं जाती. गौस ए आजम की मजलिस में चाहने वालों का मजमा लगा होता था. लेकिन आप की आवाज में अल्लाह ने वह असर दिया था कि जैसे नजदीक वालों को आवाज सुनाई देती थी, वैसी ही दूर वालों को भी. गौस ए आजम की पैदाइश रमजान महीने में हुई थी.
जन्म के समय ही आप सेहरी से इफ्तार तक मां का दूध नहीं पीते. जिस तरह रोजेदार रोजा रखता है, उसी तरह आप मां का दूध केवल सेहरी व इफ्तार के वक्त पीते थे. आप जब दस साल के हुए और मदरसा में पढ़ाई करने जाया करते थे तो फरिश्ते आते और आप के लिए मदरसा में बैठने की जगह बनाते थे.
फरिश्ते दूसरे बच्चों से कहते थे अल्लाह के वली के लिए बैठने की जगह दो. आप का लकब मोहिउद्दीन है. जिसका अर्थ मजहब को जिंदा करने वाला है. आप मजहब की तबलीग करने के लिए बगदाद गये. आप ने 521 हिजरी में बगदाद में लोगों को मजहब व दीन की बातें फैलाने के लिए बयान फरमाये और 40 सालों तक अर्थात 561 हिजरी तक मुसलसल बहुत मजबूती से नेकी व मजहब की बातों को फैलाते रहे.
आप की मजलिस में लोगों की भीड़ उमड़ती. भीड़ को देखकर ईदगाह में बयान देना शुरू किये, लेकिन वहां भी जगह कम पड़ जाती इसके बाद शहर से बाहर दूर खाली जगहों पर जाकर बयान करते.
उस जमाने में मजलिस में 70-70 हजार लोगों की भीड़ उमड़ आती थी. रवायत है कि आपका बयान सुनने के लिए जिन्नात भी आया करते थे. आप के पास बेशुमार इल्म था. जिसका फायदा दुनिया को मिला और इस्लाम नये सिरे से जिंदा हुआ.
खुदा के फज़्ल से हम पर है साया गौसे आजम का, हमें दोनों जहां में है सहारा गौसे आजम का। जनाबे शेख दूल्हा और बाराती औलिया होंगे, मजा दिखलाएगा महशर में सेहरा गौसे आजम का।
Father”pita”
Education “shiksha”
Goos-e-azam ke mazar shareef ka gilaf
Bareilly ke azam nagar se rawana hui goos-e-azam ki chadar
ग्यारहवी शरीफ की हकीकत (Gyarvi Sharif Ki Hakikat
Attec 2007″bagdaad
क़ादिरिया परंपरा की आध्यात्मिक शृंखला
- Ameer-ul-momeneen Ali ibne Abi talib
- शेख़ ख़वाजा Hasan basri
- शेख़ हबीब अजमी
- शेख़ dawud taai
- शेख़ maruf karsi
- शेख़ sirri sakti
- शेख़ juned al bagdaadi
- शेख़ Abu bakr shibli
- शेख़ Aziz al tamimi
- शेख़ wahid al tamimi
- शेख़ Farha tatursi
- शेख़ Hasan qureshi
- शेख़ Abu saeed al mubaraq mukarrmi
- शेख़ सय्यद अब्दुल-क़ादिर जीलानी
Sheikh Abdul Qadir jilani ke khaleefa
(7) शेख़ अली हद्दाद
Azam nagar me badi Shan se ghuma Goos-e-azam ke mazar ka gilaf
Yaa goos all madad

